Page 48 - E-Patrika 3rd Edition English
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e-Patrika Postal Training Centre, Vadodara
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मास ू मयत स उलझनों तक
मास ू मयत स उलझनों तक
ँ
म जानना चाहता क
ँ
वो 7-8 बरस का लड़का, अपने गाव म ,
ं
खेता म बने हुए, सकरे रास्ता और पगड डया से
ं
गुज़रते वक़्त क्या सोच रहा था ?
क्या उसक सोच, इस बात म उलझी थी
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क क्या सही ह और क्या ग़लत?
क्या वो सोच रहा था
क बगडे हुए रश्ता को कसे सम्भालना ह?
ै
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क्या उसे इस बात क फ़क्र थी
ै
क कतने पसे कमाने हा गे, बडे होने पर
या फ़र वो सोच रहा था क
बग़ीचे म लगे, उस आम क े पेड़ पर,
जो आम आज कच्चे ह,
वो कल तक पक जाएगे या नह ??
शायद उसका जीवन बेहद सरल रहा होगा
इस लए, दन ब दन उलझते ख्याला और
शोर मचाते ख़्वाआ क े बीच,
वो लड़का कह खो गया।
फ़र कभी "बग़ीचे क े आम" का सवाल
उसक े जेहन म आया ही नह ।।
Abhishek Parasar (Postal Assistant)
Anand, Gujarat Circle
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