Page 31 - 2nd Edition E-Patrika
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7. ान एव कौशल सग्रह प्रस्तुित
खो गइ वो च या ँ....
खो गइ वो च या ँ....
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खो गइ वो च या, जसम “ लखने क े सलीक े ” छुपे होते थे
“क ु शलता” क कामना से शुरू होते थे। बडा क े “चरण स्पश ” पर खत्म होते थे...
और बीच म लखी होती थी “ जदगी”
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नन्ह क े आने क “खबर”, “मा” क त बयत का दद,
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और पसे भेजने का “अनुनय”, “फसला ” क े खराब होने क वजह ...
कतना क ु छ समट जाता था एक, नीले से कागज म ...
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जसे नवयौवना भाग कर सीने से लगाती, और “अक े ले” म आखो से आसू बहाती !
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“मा” क आस थी, “ पता” का सबल थी,
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बच्चा का भ वष्य थी और गाव का गौरव थी ये “ च या”...
डा कया च लायेगा, कोइ बाच कर सुनायेगा,
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देख-देख च को कइ-कइ बार छू कर च को अनपढ भी “एहसासा ” को पढ़ लेते थे...
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अब तो “स् न” पर अगूठा दौडता ह, और अक्सर ही दल तोड़ता ह,
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मोबाइल” का स्पेस भर जाए तो, सब क ु छ दो मनट म “ डलीट” होता ह...
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सब क ु छ “ समट” गया ह 6 इच म , जसे “मकान” समट गए फ्लटा म ,
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जज्बात समट गए “मसेजा ” म , चूल्हे” समट गए गसा म ,
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और इसान समट गए पसा म ।
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एच. क े . सोनी
अनुदेशक
पी.टी.सी. वड़ोदरा
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