Page 32 - 2nd Edition E-Patrika
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7. ान एव कौशल सग्रह प्रस्तुित
हम ा ादा चा हए-समय या मोबाइल...?
हम ा ादा चा हए-समय या मोबाइल...?
"हम खुद ही तय करना चा हए क हम क्या ज़्यादा चा हए – समय या मोबाइल?"
समस्या ज़्यादा होती ह तो उसीक बात भी ज़्यादा होती ह। समय जतना मूल्यवान
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ह इतना ही जसे बबा द होता हो एेसी ज़दगी आज ज़्यादातर लोग जी रहे ह।
आजकल समझदार वग म एक नया ट ड बन गया है — कसी को मोबाइल पर
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कॉल करने से पहले मसेज करक े पूछना क "कब बात क जा सकती ह?" "व्हॉट
इज योर राइट या कम्फटबल टाइम टू टॉक ?"
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आजकल जब आप कसी को फोन करते ह (अब फोन का मतलब मोबाइल से ही ह), तो
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सफ 20–25% मामला म ही कॉल तुरत लगती ह, बाक 75% कॉल तो 'एगेज्ड' ही आते
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ह। आपको यही सुनने को मलता ह क – "आपने जस व्य क्त को कॉल कया ह, वह इस
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समय व्यस्त ह, क ृ पया क ु छ देर बाद कॉल कर …" या सामने वाले क तरफ से ऑटोम टक
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मसेज आ जाता ह क– "कन आइ कॉल यू लटर?" या "आइ कन नॉट टॉक राइट नाउ।"
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अगर एेसा अजन बया क े साथ हो तो ठ क ह, ले कन अब तो जान-पहचान वाला क े साथ भी
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एेसा ही होने लगा ह। दोस्ता , रश्तेदारा या कसी को भी कॉल करते समय अब टाइम का
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ध्यान रखना पड़ता ह। हाला क, समय क मया दा और अनुशासन का पालन भी ज़रूर ह।
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जसे-जसे मोबाइल क सख्या बढ़ ह, वसे-वसे लोगा क े बीच बातचीत भी बढ़ ह। अब तो
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एेसा हो गया ह क अगर कसी का फ़ोन बज़ी न मले तो सुखद आश्चय होता ह। कार,
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रक्शा, साइ कल, स्क ू टर चलाते हुए मोबाइल पर बात करना आम बात हो गइ ह। ख़र,
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समय और लोगा क व्यस्तता क इस सामान्य ले कन गभीर सच्चाइ क े बाद आइए, अब
समय क गहराइ पर बात कर ।
समय को बाधा नह जा सकता, समय को रोका नह जा सकता; ले कन अपने जीवन क े
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नज़ रए या सजोगा क े अनुसार कइ बार एेसा लगता ह जसे समय थम गया हो या रुक गया
हो। हम इस बात का भी ध्यान रखना चा हए क हमारे कारण कसी और का समय बबा द न
हो, क्या क समय सफ गुज़ारने क े लए नह होता — उसे जीने और अनुभव करने क े लए
भी होता ह।
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आपको होता होगा क आजकल समय क चचा बहुत ज़्यादा हो रही ह — ले कन क्या करे
दोस्ता , जसक सबसे ज़्यादा समस्या होती ह, उसी क बात भी सबसे ज़्यादा होती ह। आज
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ज़्यादातर लोग एेसी ज़दगी जी रहे ह जसम समय बेहद क मती होते हुए भी लगातार बबा द
होता नज़र आता ह। लोग एक-दूसरे से जतने दूर हो रहे ह, उतने ही मोबाइल क े और कर ब
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आ रहे ह, क्या क अब लोग मोबाइल को ही सबसे बड़ा सहारा मानने लगे ह। वास्तव म , हम
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ये जानने और समझने क े लए तयार ही नह ह क यह अ तरेक हमारे शार रक और
मान सक दोना तरह क े स्वास्थ्य क े लए नुकसानदेह ह।
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ले कन समय का क्या ? शर र और मन एक दन खत्म हो ही जाने ह — ये सबको पता ह।
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पर जीवन का जो समय जा चुका ह या जा रहा ह, वह कभी लौटकर नह आएगा। य द हमारे
पास समय ही नह बचेगा तो फर हमारे पास बचेगा क्या ? और वह भी कसक े लए?
हम खुद ही तय करना होगा क हम ज़्यादा क्या चा हए — समय या मोबाइल ?
ि जेश मेहता
अनुदेशक
पी.टी.सी. वड़ोदरा
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